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समारोह

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

June 12, 2025 by Souvik Leave a Comment

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है और देश भर में इसे काफी श्रद्धा तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है परन्तु इसका सबसे भव्य आयोजन उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी में देखने को मिलता है। पुरी स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर भारत के चार राज्यों में से एक है।

यह भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से भी एक है और यहां भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है। यह रथ यात्रा आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ होती है। इस दिन भारी संख्या में भक्तगण रथ यात्रा उत्सव में सम्मिलित होने के लिए देश-विदेश से पुरी खिंचे चले आते हैं। Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

इस वर्ष 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, शुक्रवार को शुरू होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, द्वितीया तिथि 26 जून को दोपहर 1:24 बजे शुरू होगी और 27 जून को सुबह 11:19 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर यह पर्व 27 जून को मनाया जाएगा।

 

 

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व
Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Rath Yatra)

हिंदू पंचाग अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर कई सारी पौराणिक और ऐतहासिक मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित है। एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार सहित नीलांचल सागर (वर्तमान में उड़ीसा क्षेत्र) के पास रहते थे। Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

एक बार समुद्र में उन्हें एक विशालकाय लकड़ी तैरती हुई दिखाई दी। राजा ने उस लकड़ी को समुद्र से निकलवाया और उस लकड़ी की सुंदरता देखकर विचार किया की इस लकड़ी से जगदीश की मूर्ति बनायी जाय। वह इसपर विचार ही कर रहे थे कि तभी वहां एक बूढ़े बढ़ई के रुप में देवों के शिल्पी विश्वकर्मा प्रकट हो गये।

भगवान जगदीश की मूर्ति बनाने के लिए बूढ़े बढ़ई के वेश में प्रकट हुए विश्वकर्मा जी ने एक शर्त रखी कि मैं जबतक कमरे में मूर्ति बनाऊंगा तबतक कमरे में कोई ना आये। राजा ने उनकी इस शर्त को मान लिया। आज के समय में जहा पर श्रीजगन्नाथ जी का मंदिर है, वही पर वह बूढ़ा बढ़ई मूर्ति निर्माण कार्य में लग गया। Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

राजा और उनके परिवार वालो को यह तो मालूम नही था कि यह स्वंय विश्वकर्मा है तो कई दिन बीत जाने के पश्चात महारानी को ऐसा लगा कि कही वह बूढ़ा बढ़ई अपने कमरे में कई दिनों तक भूखे रहने के कारण मर तो नही गया। अपनी इस शंका को महारानी ने राजा से भी बताया और जब महाराजा ने कमरे का दरवाजा खुलवाया तो वह बूढ़ा बढ़ई कही नही मिला, लेकिन उसके द्वारा काष्ठ की अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तिया वहां मौजूद मिली।

इस घटना से राजा और रानी काफी दुखी हो उठे। लेकिन उसी समय चमात्कारित रुप से वहां आकाशवाणी हुई कि ‘व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।’ आज भी वही अर्धनिर्मित मूर्तियां जगन्नाथपुरी मंदिर में विराजमान हैं। जिनकी सभी भक्त इतनी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं और यही मूर्तियां रथ यात्रा में भी शामिल होती हैं।

रथ यात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण और बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में रथयात्रा का यह कार्यक्रम हरवर्ष पुरी में इतने धूम-धाम के साथ आयोजित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रथ यात्रा में हिस्सा लेकर रथ खिचने वाले श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है – रिवाज एवं परंपरा (How Do We Celebrate Rath Yatra – Custom and Tradition of Rath Yatra)

रथ यात्रा का त्योहार मनाने की शुरुआत जगन्नाथ पुरी से ही हुई है। इसके बाद यह त्योहार पूरे भारत भर में मनाया जाने लगा। जगन्नाथ रथ यात्रा आरंभ होने की शुरुआत में पुराने राजाओं के वशंज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने झाड़ु लगाते हैं और इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ रथयात्रा शुरु होती है।

रथ यात्रा के शुरु होने के साथ ही कई सारे पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाये जाते हैं और इसकी ध्वनि के बीच सैकड़ो लोग मोटे-मोटे रस्सों से रथ को खींचते है। इसमें सबसे आगे बलभद्र यानी बलराम जी का रथ होता है। इसके थोड़ी देर बाद सुभद्रा जी का रथ चलना शुरु होता है। सबसे अंत में लोग जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक खींचते है। रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि इस दिन रथ को खींचने में सहयोग से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

यही कारण इस दिन भक्त भगवान बलभद्र, सुभद्रा जी और भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए ललायित रहते हैं। जगन्नाथ जी की यह रथ यात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है। यह वही स्थान है जहा विश्वकर्मा जी ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था।

इस स्थान को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यदि सूर्यास्त तक कोई रथ गुंदेचा मंदिर नहीं पहुंच पाता है तो वह अगले दिन यात्रा पूरी करता है। इस जगह पर भगवान एक सप्ताह तक प्रवास करते हैं और यहीं उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी रथ यात्रा शुरु होती है। इस रथ यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

शाम से पूर्व ही तानो रथ जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच जाते हैं। जहां एक दिन तक प्रतिमाएं भक्तों के दर्शन के लिए रथ में ही रखी जाती है। अगले दिन मंत्रोच्चारण के साथ देव प्रतिमाओं को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है और इसी के साथ रथ यात्रा का यह पूर्ण कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। इस पर्व के दौरान देश भर के कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है।

 

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Rath Yatra)

रथ यात्रा का यह पर्व काफी प्राचीन है और इसे काफी समय से पूरे भारत भर में मनाया जा रहा है। यह सदा से ही लोगो की श्रद्धा प्रतीक रहा है, यहीं कारण है कि इस दिन भारी संख्या में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए दूर-दूर से उड़ीसा के पुरी में आते है।

पहले के समय संसाधनों की कमी के कारण ज्यादेतर दूर-दराज के श्रद्धालु रथ यात्रा के इस पावन पर्व पर नही पहुंच पाते थे। लेकिन वर्तमान में तकनीकी विकास ने इसके स्वरुप को भी भव्य बना दिया है। लेकिन इसके कारण कई सारी दुर्घटनाएं भी देखने को मिलती है क्योंकि अब यात्रा के साधनों के कारण पुरी तक पहुंचना काफी आसान हो गया है।

जिससे इस पर्व पर भारी संख्या में श्रद्धालु आने लगे और अत्यधिक भीड़ में रथ यात्रा के दौरान रस्सी पकड़ने के चक्कर में कई सारे श्रद्धालु घायल हो जाते हैं, कुचल दिये जाते हैं। कई बार तो भगदड़ की स्थिति मचने पर कई लोगो की मृत्यु भी हो जाती है। इस तरह की चीजें इस पवित्र पर्व में नकरात्मकता पैदा करने का कार्य करती है। इसलिए रथ यात्रा के इस पर्व में सुरक्षा इंतजामों को और भी अच्छा करने की जरुरत है ताकि आने वाले भविष्य में भी यह लोगो को श्रद्धा का संदेश इसी प्रकार से देता रहा।

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

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रथ यात्रा का महत्व (Significance of Rath Yatra)

दस दिवसीय रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। इसका भारत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा सौ यज्ञों के बराबर है। यहीं कारण है इस रथयात्रा के दौरान देश भर के विभिन्न रथ यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते है और इसके सबसे महत्वपूर्ण स्थान पुरी में तो इस दिन भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है।

इस दिन भक्त तमाम कष्टों को सहते हुए भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को खींचने का प्रयास करते हैं और ईश्वर से अपने दुखों तथा कष्टों को दूर करने की प्रर्थना करते हैं। वास्तव में यह पर्व हमें भक्ति तथा श्रद्धा के महत्व को समझाने का कार्य करता है।

 

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

प्रसिद्ध रथ यात्रा स्थल (Famous Rath Yatra Places)

वैसे तो रथ यात्रा के कार्यक्रम देश-विदेश के कई स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं। लेकिन इनमें से कुछ रथ यात्राएं ऐसी हैं, जो पूरे विश्व भर में काफी प्रसिद्ध है।

  1. उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में आयोजित होने वाली रथयात्रा
  2. पश्चिम बंगाल के हुगली में आयोजित होने वाली महेश रथ यात्रा
  3. पश्चिम बंगाल के राजबलहट में आयोजित होने वाली रथ यात्रा
  4. अमेरिका के न्यू यार्क शहर में आयोजित होने वाली रथ यात्रा

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा का इतिहास (History of Rath Yatra)

पूरे भारत भर में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का यह पर्व काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसकी उत्पत्ति कैसे और कब हुई इसके विषय में कोई विशेष जानकारी नही प्राप्त है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह भारत के सबसे प्राचीनतम पर्वों में से एक है।

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पूरे देश भर में रथ यात्रा के पर्व का आयोजन किया जाता है और इस दौरान विभिन्न स्थलों पर मेले और नाटकों का भी आयोजन होता है। इनमें से पुरी, हुगली जैसे स्थानों पर होने वाली रथ यात्राओं में भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है।

पुरी में रथ यात्रा के इस पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है और इसकी शुरुआत गंगा राजवंश द्वारा सन् 1150 इस्वी में की गई थी। यह वह पर्व था, जो पूरे भारत भर में पुरी की रथयात्रा के नाम से काफी प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही पाश्चात्य जगत में यह पहला भारतीय पर्व था, जिसके विषय में विदेशी लोगो को जानकारी प्राप्त हुई। इस त्योहार के विषय में मार्को पोलो जैसे प्रसिद्ध यात्रियों ने भी अपने वृत्तांतों में वर्णन किया है 

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

Jagannath Rath Yatra 2025 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

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स्वतंत्रता दिवस || Independence Day

August 10, 2021 by Souvik Leave a Comment

Independence Day ||  स्वतंत्रता दिवस

 


भूमिका : 15 अगस्त सन् 1947 को हमारा देश अंग्रेजों के शासन से मुक्त हुआ और उसी दिन हमें पूर्ण स्वतंत्रता मिली। वर्षों के संघर्ष ओर शहीदों के बलिदान के बाद हमारा देश आजाद हुआ। अतः हर वर्ष 15 अगस्त को देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस दिन हम अपने आजादी के दीवाने शहीदों को याद करते हैं तथा प्रतिवर्ष आजादी की यादगार में इससे मनाते हैं।

 

स्वतंत्रता दिवस || Independence day
स्वतंत्रता दिवस || Independence day

 

वर्णन : यह दिन एक राष्ट्रीय पर्व के राष्ट्रपति पद के रूप में मनाया जाता है है।भारत के हर गाव शहर ओर नगर में प्रातः राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर राष्ट्रीय गीत गाकर यह पर्व मनाया जाता है। दिल्ली में इसे चाव ओर उत्साह के साथ लाल किले के मैदान में मनाया जाता है। लाल किले पर प्रधानमंत्री द्वारा झंडा फहराया जाता है तथा सभी तीनों सेनाएं झंडे को सलामी देती है।राष्ट्रीय गीत गाया जाता है तथा राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी दी जाती है। प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले से देश के नाम सन्देश दिया जाता है।

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महत्व : यह दिन हमें हमेशा संत याद दिलाता है कि आजादी की कीमत बहुत होती है तथा आजादी का महत्व क्या होती है इस दिन हमारे भाव पुनः जागृत हो जाते हैं कि हम अपने देश को भविष्य में कभी गुलाम नहीं होने देंगे।

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Eid ul Adha in hindi || ईद उल-अधा

July 16, 2021 by Souvik Leave a Comment

 

When is Eid ul Adha 2021
When is Eid ul Adha 2021

 

कैलेंडर में अंतिम महीने के रूप में, इस्लामी चंद्र कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण महीना है और एक ‘तीर्थयात्रा के महीने’ के रूप में, जिसमें हज यात्रा शामिल है, जो दुनिया भर से मुसलमानों को सऊदी अरब की यात्रा पर पूजा करने के लिए देखता है। मक्का।ये है इस साल ईदुल-अधा के बारे में जो आपको जानना जरूरी है।

ईद उल-अधा कब है?

ईद उल-अधा, जिसका अर्थ है बलिदान का त्योहार ‘, अराफा के दिन के बाद होता है, जो उत्सव शुरू होने से पहले उपवास का अंतिम दिन होता है।

सऊदी अरब में चांद दिखने के अनुसार इस साल, अराफा का दिन जुलाई 19 पर पड़ता है और ईद उल-अधा जुलाई 20 से शुरू होता है।

विज्ञापन इस्लामी चंद्र कैलेंडर हर साल १० से १२ दिनों के बीच बदलता है, क्योंकि चंद्र दर्शन तय करते हैं जब इस्लामी महीने, और प्रमुख कार्यक्रम जैसे हज और ईद होते हैं। कुछ मुसलमान २१ जुलाई को छुट्टी मना सकते हैं यदि वे चंद्र का पालन कर रहे हैं हालांकि अलग-अलग देशों में देखा जा सकता है।

उदाहरण के लिए, पाकिस्तान, यूके और मोरक्को में कई लोग 21 जुलाई से ईद मनाएंगे, जो अपने-अपने देशों में चंद्र दर्शन के बाद सऊदी अरब की टिप्पणियों के अनुसार 11 जुलाई के बजाय 12 जुलाई को धू-अल-हिज्जा की शुरुआत करेंगे।

सबसे बड़ा इस्लामी अवकाश इस्लामिक पैगंबर इब्राहिम की इच्छा को मनाने और मनाने के लिए आयोजित किया जाता है, जब ईश्वर, अल्लाह द्वारा आज्ञा दी जाती है।

ईद उल-अधा तीन दिनों तक चलेगा और हज के तीसरे दिन, इस्लाम के पांचवें स्तंभ, जो इस साल 18 जुलाई से शुरू होता है, पर आयोजित किया जाता है।

यह ईद से कैसे अलग है
उल-फितर?

जबकि गर्मी के समय में ईद उल-अधा का इस्लामी उत्सव हर साल बलिदान के त्योहार के रूप में होता है, ईदुल-फितर दो महीने पहले उपवास तोड़ने के उत्सव के रूप में होता है। यह तीन दिवसीय उत्सव का प्रतीक है जो अंत में आता है। रमजान के महीने भर के उपवास की अवधि, और 2021 में यूके में 13 मई से शुरू हुई।

इस्लामिक चंद्र कैलेंडर की शिफ्टिंग तिथियों के अनुसार, ईद उल-फितर मुस्लिम कैलेंडर में दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन आयोजित किया जाता है।

दो ईद की छुट्टियों को समान तरीके से मनाया जाता है, लेकिन ईद उल-फितर को इस्लाम में दो ईदों में से कम के रूप में देखा जाता है और इसे अक्सर ‘छोटी ईद’ कहा जाता है – ईद उल-अधा को दोनों में से सबसे पवित्र माना जाता है।

भारत में, सिड कल यानि 4 मई को मनाया जाएगा क्योंकि रमजान के अंत को चिह्नित करते हुए भारत में शाम 6:53 बजे अर्धचंद्राकार चंद्रमा देखा गया था। इसलिए देश में 14 मई को ईद-उल-फितर मनाई जाएगी। … ईद रमजान के महीने भर के उपवास की अवधि के अंत का प्रतीक है।

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चिपको आंदोलन || Chipko Andolan

July 9, 2021 by Souvik Leave a Comment

चिपको आंदोलन || Chipko Andolan

 

चिपको शब्द का अर्थ है, ‘चिपकना’ या ‘गले लगाना’। चिपको आंदोलन तेजी से वनों की कटाई के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था। यह घटना २६ मार्च १९७३ को हुई थी। उत्तराखंड के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई शुरू हो गई थी, जिसके परिणामस्वरूप इस तरह का एक असामान्य विरोध हुआ। पहले इस तरह का विरोध १७३० ईस्वी में देखा गया था जहाँ खेजड़ी के पेड़ों को बचाते हुए ३६३ राजस्थानी ग्रामीणों की मृत्यु हो गई थी। यह प्रेरणा हो सकती है
1973 का चिपको आंदोलन।

 

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चिपको आंदोलन- इसकी शुरुआत क्यों हुई?

  1. तीव्र शहरी विकास परियोजनाओं के कारण
    जैसे बांधों और सड़कों का निर्माण, एक बड़ा
    उत्तराखंड में कई पेड़ काटे जा रहे हैं।
  2. इस जन पर्यावरण का लक्ष्य
    आंदोलन ध्यान आकर्षित करने और वनों की कटाई को रोकने के लिए था।
  3. इस आंदोलन ने शांतिपूर्ण प्रतिरोध के गांधीवादी दर्शन का अनुसरण किया। यह लोगों के खिलाफ विद्रोह था
  4. पारिस्थितिक संतुलन को नष्ट करना।
  5. चिपको आंदोलन को ‘पारिस्थितिकी नारीवाद’ आंदोलन भी कहा जा सकता है।

 

 

 

चिपको आंदोलन – किसने भाग लिया ?

  1. इस आंदोलन में सबसे बड़ी भागीदार महिलाएं थीं।
  2. महिलाएं कृषकों की रीढ़ होती हैं
    समुदाय, इसलिए यह आवश्यक था कि
    महिलाएं वनों की कटाई के खिलाफ खड़ी होती हैं।
  3. महिलाओं के अलावा, सामूहिक विरोध था
    सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद के नेतृत्व में
    भट्ट।
  4. चंडी प्रसाद भट्ट ने 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार जीता और उसके बाद
    सुंदरलाल बहुगुणा ने पद्म विभूषण पुरस्कार 2009 जीता।

 

 

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चिपको आंदोलन – इसके क्या हैं
उपलब्धियां ?

  1. चिपको आंदोलन ने 1980 में लड़ाई जीती जब सरकार ने की भावना पर प्रतिबंध लगा दिया
    हिमालय के जंगलों में 15 साल से पेड़
  2. बाद में इस प्रतिबंध को पश्चिमी घाट और विंध्य तक बढ़ा दिया गया।
  3. चिपको आंदोलन सबसे पहले किसका था
    पर्यावरण आंदोलन जिसने लोगों को आकर्षित किया
    पारिस्थितिक मुद्दों पर ध्यान।
  4. इसी तरह के आंदोलन में होने लगे
    विभिन्न अन्य क्षेत्रों, उदा। कर्नाटक राज्य में अप्पिको आंदोलन।

 

 

 

 

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Onam Festival 2021; ओणम उत्सव का महत्व; ओणम के अनुष्ठान; पारंपरिक पर्व

June 26, 2021 by Souvik Leave a Comment

Onam Festival 2021; ओणम उत्सव का महत्व; ओणम के अनुष्ठान; पारंपरिक पर्व

ओणम महोत्सव; ओणम उत्सव का महत्व; ओणम के अनुष्ठान; पारंपरिक पर्व
ओणम महोत्सव; ओणम उत्सव का महत्व; ओणम के अनुष्ठान; पारंपरिक पर्व/assamstudyhub.com

 

भारतीय लोग उत्सब प्रिय होते है । यहाँ बर्ष भर उत्सब की धूम लगी रहती ह । यह उत्सब हमारे जीबन में उत्साह और उल्लास भर देते हे ।दक्षिण भारत में एक रज्जो केरल हे । वहा के लोगो का प्रमुख त्योहार हैं ओणम । यह त्योहार स्राबन मास में मनाए जाते है । इस त्योहार के साथ महाबली के पौराणिक कथा जुड़ी हुई है ।

ओणम महोत्सव :

ओणम त्योहार दयालु और बहुत प्यारे दानव राजा महाबली को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे इस त्योहार के दौरान केरल लौटते हैं।

ओणम, एक फसल उत्सव जो सालाना अगस्त / सितंबर के महीनों में पड़ता है, भारत और दुनिया भर में मनाया जाता है, और केरलवासियों के बीच मुख्य त्योहार है। चिंगम के मलयाली कैलेंडर महीने के अनुसार, यह त्यौहार 22 वें नक्षत्र थिरुवोनम को पड़ता है, और मलयालम वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, जिसे कोल्ला वर्शम कहा जाता है।

त्योहार उस दिन से शुरू होता है जिसे अथम कहा जाता है, और दसवें दिन समाप्त होता है, जिसे थिरु ओणम या थिरुवोनम के नाम से जाना जाता है, ओणम के त्योहार के दौरान सबसे शुभ दिन भी। इस साल, ओणम तक का उत्सव शनिवार 22 अगस्त से शुरू होगा और थिरुवोनम 31 अगस्त को मनाया जाएगा।

ओणम त्योहार दयालु और बहुत प्यारे दानव राजा महाबली को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, जिनके बारे में माना जाता है कि इस त्योहार के दौरान वे केरल लौट आए थे।

 

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ओणम उत्सव का महत्व :

वैष्णव पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा महाबली ने देवताओं को हरा दिया और तीनों लोकों पर शासन करना शुरू कर दिया। राजा महाबली एक राक्षस राजा थे जो असुर जनजाति के थे। दयालु राजा प्रजा को बहुत प्रिय था। देवता राजा महाबली की लोकप्रियता से असुरक्षित हो गए और भगवान विष्णु ने महाबली को रोकने में मदद की

भगवान विष्णु ने ब्राह्मण बौने वामन के रूप में अपना पांचवां अवतार लिया और राजा महाबली से मिलने गए। राजा महाबली ने वामन से पूछा कि वह क्या चाहते हैं, जिस पर वामन ने उत्तर दिया, “भूमि के तीन टुकड़े”। जब वामन को उसकी इच्छा दी गई, तो वह आकार में बढ़ गया और क्रमशः अपनी पहली और दूसरी गति में, उसने आकाश और फिर पाताल लोक को ढँक दिया।

जब भगवान विष्णु अपनी तीसरी गति लेने वाले थे, तब राजा महाबली ने अपना सिर भगवान को अर्पित कर दिया। इस कृत्य ने भगवान विष्णु को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने महाबली को हर साल ओणम उत्सव के दौरान अपने राज्य और लोगों से मिलने का अधिकार दिया।

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ओणम के अनुष्ठान :

दस दिनों के उत्सव के दौरान, भक्त स्नान करते हैं, प्रार्थना करते हैं, पारंपरिक कपड़े पहनते हैं – घर की महिलाएं कसावु साड़ी नामक एक सफेद और सोने की साड़ी पहनती हैं – नृत्य प्रदर्शन में भाग लेती हैं, पुक्कलम नामक फूलों की रंगोली बनाती हैं और सद्या नामक पारंपरिक दावत बनाती हैं। ओणम के दौरान केले के पत्तों पर सद्या परोसा जाता है।

10-दिवसीय उत्सव में लोग वल्लम काली नामक नाव दौड़ में भाग लेते हैं, पुलिकली नामक बाघ नृत्य, भगवान या ओनाथप्पन की पूजा करते हैं, रस्साकशी, थुम्बी थुल्लल या महिला नृत्य अनुष्ठान, मुखौटा नृत्य या कुम्मत्तिकली, ओनाथल्लू या मार्शल आर्ट, ओनाविलु / संगीत, ओनापोटन (वेशभूषा), अन्य मनोरंजक गतिविधियों के बीच लोक गीत।

नदियों और निकटवर्ती समुद्र में नौकादार का आयोजन किया जाता है। दूर दूर के गांववाले अपने। नौकाय लेकर पम्पा नदी के तट पर आता है। गाव के सभी छोटे बड़े लोग उन नौकाओं में बैठते हैं। परंपरागत पोशाकों पहनकर गीत गाते हुए वे नौका चलाते हैं। दौड़ में विजेता नौकाओं को पुरस्कृत किया जाता है। ये दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है जिसे देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक यहाँ आते हैं।

पारंपरिक पर्व :

पारंपरिक ओणम सद्या (दावत) एक 9-कोर्स भोजन है जिसमें 26 व्यंजन होते हैं। इसमें कलां (एक शकरकंद और रतालू नारियल करी पकवान), ओलन (नारियल की सब्जी में तैयार किया गया सफेद लौकी), अवियल (नारियल की सब्जी में मौसमी सब्जियां), कूटू करी (छोले से बनी एक डिश), रसम (एक सूप जैसी डिश) शामिल हैं। टमाटर और काली मिर्च के आधार के साथ बनाया जाता है, चावल और अन्य तैयारियों के साथ खाया जाता है) और बहुत पसंद की जाने वाली मिठाई, पारिप्पु पायसम (चावल की खीर की तैयारी)।

 

 

 

ओणम उत्सव का तीसरे दिन

ऐसी मान्यता है कि तीरों नाम के तीसरे दिन महाबली पाताल लोक वापस चले जाते हैं। तीसरे दिन लोग आंगन में बनी कलाकृतियों को हटा देते हैं इस प्रकार अत्यंत हर्षोल्लास के साथ ओं नाम त्योहार संपन्न होता

तीसरे दिन लोग आंगन में बनी कलाकृतियों को हटा देते हैं। इस प्रकार अत्यंत हर्षोल्लास के साथ ओं नाम त्योहार संपन्न होता है।

 

ओनाम हमें महाबली के समान बलवान और दानी बनने की शिक्षा देता है।

 

The most important day of Onam (known as Thiru Onam or Thiruvonam, meaning “Sacred Onam Day”) is the second day. In 2021, Thiru Onam is on August 21. In 2022, Thiru Onam is on September 8. In 2023, Thiru Onam is on August 29

 

 

Filed Under: समारोह Tagged With: Onam Festival, ओणम उत्सव का महत्व, ओणम के अनुष्ठान, ओणम महोत्सव, पारंपरिक पर्व, समारोह

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