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Rath Yatra 2021 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

July 10, 2021 by Souvik Leave a Comment

Rath Yatra 2021 In Hindi || रथ यात्रा का पर्व

रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है और देश भर में इसे काफी श्रद्धा तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है परन्तु इसका सबसे भव्य आयोजन उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी में देखने को मिलता है। पुरी स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर भारत के चार राज्यों में से एक है।

यह भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से भी एक है और यहां भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है। यह रथ यात्रा आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ होती है। इस दिन भारी संख्या में भक्तगण रथ यात्रा उत्सव में सम्मिलित होने के लिए देश-विदेश से पुरी खिंचे चले आते हैं।

रथ यात्रा 2021 (Rath Yatra 2021)

वर्ष 2021 में रथ यात्रा का उत्सव 12 जुलाई, सोमवार के दिन मनाया जायेगा।

 

 

rath yatra in hindi by assamstudyhub.com
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Contents hide
रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Rath Yatra)
रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है – रिवाज एवं परंपरा (How Do We Celebrate Rath Yatra – Custom and Tradition of Rath Yatra)
रथ यात्रा की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Rath Yatra)
रथ यात्रा का महत्व (Significance of Rath Yatra)
प्रसिद्ध रथ यात्रा स्थल (Famous Rath Yatra Places)
रथ यात्रा का इतिहास (History of Rath Yatra)
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रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Rath Yatra)

हिंदू पंचाग अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर कई सारी पौराणिक और ऐतहासिक मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित है। एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार सहित नीलांचल सागर (वर्तमान में उड़ीसा क्षेत्र) के पास रहते थे।

एक बार समुद्र में उन्हें एक विशालकाय लकड़ी तैरती हुई दिखाई दी। राजा ने उस लकड़ी को समुद्र से निकलवाया और उस लकड़ी की सुंदरता देखकर विचार किया की इस लकड़ी से जगदीश की मूर्ति बनायी जाय। वह इसपर विचार ही कर रहे थे कि तभी वहां एक बूढ़े बढ़ई के रुप में देवों के शिल्पी विश्वकर्मा प्रकट हो गये।

भगवान जगदीश की मूर्ति बनाने के लिए बूढ़े बढ़ई के वेश में प्रकट हुए विश्वकर्मा जी ने एक शर्त रखी कि मैं जबतक कमरे में मूर्ति बनाऊंगा तबतक कमरे में कोई ना आये। राजा ने उनकी इस शर्त को मान लिया। आज के समय में जहा पर श्रीजगन्नाथ जी का मंदिर है, वही पर वह बूढ़ा बढ़ई मूर्ति निर्माण कार्य में लग गया।

राजा और उनके परिवार वालो को यह तो मालूम नही था कि यह स्वंय विश्वकर्मा है तो कई दिन बीत जाने के पश्चात महारानी को ऐसा लगा कि कही वह बूढ़ा बढ़ई अपने कमरे में कई दिनों तक भूखे रहने के कारण मर तो नही गया। अपनी इस शंका को महारानी ने राजा से भी बताया और जब महाराजा ने कमरे का दरवाजा खुलवाया तो वह बूढ़ा बढ़ई कही नही मिला, लेकिन उसके द्वारा काष्ठ की अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तिया वहां मौजूद मिली।

इस घटना से राजा और रानी काफी दुखी हो उठे। लेकिन उसी समय चमात्कारित रुप से वहां आकाशवाणी हुई कि ‘व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।’ आज भी वही अर्धनिर्मित मूर्तियां जगन्नाथपुरी मंदिर में विराजमान हैं। जिनकी सभी भक्त इतनी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं और यही मूर्तियां रथ यात्रा में भी शामिल होती हैं।

रथ यात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण और बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में रथयात्रा का यह कार्यक्रम हरवर्ष पुरी में इतने धूम-धाम के साथ आयोजित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रथ यात्रा में हिस्सा लेकर रथ खिचने वाले श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

 

रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है – रिवाज एवं परंपरा (How Do We Celebrate Rath Yatra – Custom and Tradition of Rath Yatra)

रथ यात्रा का त्योहार मनाने की शुरुआत जगन्नाथ पुरी से ही हुई है। इसके बाद यह त्योहार पूरे भारत भर में मनाया जाने लगा। जगन्नाथ रथ यात्रा आरंभ होने की शुरुआत में पुराने राजाओं के वशंज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाले झाड़ू से भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने झाड़ु लगाते हैं और इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ रथयात्रा शुरु होती है।

रथ यात्रा के शुरु होने के साथ ही कई सारे पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाये जाते हैं और इसकी ध्वनि के बीच सैकड़ो लोग मोटे-मोटे रस्सों से रथ को खींचते है। इसमें सबसे आगे बलभद्र यानी बलराम जी का रथ होता है। इसके थोड़ी देर बाद सुभद्रा जी का रथ चलना शुरु होता है। सबसे अंत में लोग जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक खींचते है। रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि इस दिन रथ को खींचने में सहयोग से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यही कारण इस दिन भक्त भगवान बलभद्र, सुभद्रा जी और भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए ललायित रहते हैं। जगन्नाथ जी की यह रथ यात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है। यह वही स्थान है जहा विश्वकर्मा जी ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था।

इस स्थान को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यदि सूर्यास्त तक कोई रथ गुंदेचा मंदिर नहीं पहुंच पाता है तो वह अगले दिन यात्रा पूरी करता है। इस जगह पर भगवान एक सप्ताह तक प्रवास करते हैं और यहीं उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी रथ यात्रा शुरु होती है। इस रथ यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

शाम से पूर्व ही तानो रथ जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच जाते हैं। जहां एक दिन तक प्रतिमाएं भक्तों के दर्शन के लिए रथ में ही रखी जाती है। अगले दिन मंत्रोच्चारण के साथ देव प्रतिमाओं को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है और इसी के साथ रथ यात्रा का यह पूर्ण कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। इस पर्व के दौरान देश भर के कई स्थानों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है।

 

 

रथ यात्रा की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Rath Yatra)

रथ यात्रा का यह पर्व काफी प्राचीन है और इसे काफी समय से पूरे भारत भर में मनाया जा रहा है। यह सदा से ही लोगो की श्रद्धा प्रतीक रहा है, यहीं कारण है कि इस दिन भारी संख्या में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए दूर-दूर से उड़ीसा के पुरी में आते है।

पहले के समय संसाधनों की कमी के कारण ज्यादेतर दूर-दराज के श्रद्धालु रथ यात्रा के इस पावन पर्व पर नही पहुंच पाते थे। लेकिन वर्तमान में तकनीकी विकास ने इसके स्वरुप को भी भव्य बना दिया है। लेकिन इसके कारण कई सारी दुर्घटनाएं भी देखने को मिलती है क्योंकि अब यात्रा के साधनों के कारण पुरी तक पहुंचना काफी आसान हो गया है।

जिससे इस पर्व पर भारी संख्या में श्रद्धालु आने लगे और अत्यधिक भीड़ में रथ यात्रा के दौरान रस्सी पकड़ने के चक्कर में कई सारे श्रद्धालु घायल हो जाते हैं, कुचल दिये जाते हैं। कई बार तो भगदड़ की स्थिति मचने पर कई लोगो की मृत्यु भी हो जाती है। इस तरह की चीजें इस पवित्र पर्व में नकरात्मकता पैदा करने का कार्य करती है। इसलिए रथ यात्रा के इस पर्व में सुरक्षा इंतजामों को और भी अच्छा करने की जरुरत है ताकि आने वाले भविष्य में भी यह लोगो को श्रद्धा का संदेश इसी प्रकार से देता रहा।

 

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रथ यात्रा का महत्व (Significance of Rath Yatra)

दस दिवसीय रथ यात्रा का पर्व भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। इसका भारत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा सौ यज्ञों के बराबर है। यहीं कारण है इस रथयात्रा के दौरान देश भर के विभिन्न रथ यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते है और इसके सबसे महत्वपूर्ण स्थान पुरी में तो इस दिन भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है।

इस दिन भक्त तमाम कष्टों को सहते हुए भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को खींचने का प्रयास करते हैं और ईश्वर से अपने दुखों तथा कष्टों को दूर करने की प्रर्थना करते हैं। वास्तव में यह पर्व हमें भक्ति तथा श्रद्धा के महत्व को समझाने का कार्य करता है।

 

 

प्रसिद्ध रथ यात्रा स्थल (Famous Rath Yatra Places)

वैसे तो रथ यात्रा के कार्यक्रम देश-विदेश के कई स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं। लेकिन इनमें से कुछ रथ यात्राएं ऐसी हैं, जो पूरे विश्व भर में काफी प्रसिद्ध है।

  1. उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में आयोजित होने वाली रथयात्रा
  2. पश्चिम बंगाल के हुगली में आयोजित होने वाली महेश रथ यात्रा
  3. पश्चिम बंगाल के राजबलहट में आयोजित होने वाली रथ यात्रा
  4. अमेरिका के न्यू यार्क शहर में आयोजित होने वाली रथ यात्रा

 

रथ यात्रा का इतिहास (History of Rath Yatra)

पूरे भारत भर में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का यह पर्व काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसकी उत्पत्ति कैसे और कब हुई इसके विषय में कोई विशेष जानकारी नही प्राप्त है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह भारत के सबसे प्राचीनतम पर्वों में से एक है।

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पूरे देश भर में रथ यात्रा के पर्व का आयोजन किया जाता है और इस दौरान विभिन्न स्थलों पर मेले और नाटकों का भी आयोजन होता है। इनमें से पुरी, हुगली जैसे स्थानों पर होने वाली रथ यात्राओं में भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है।

पुरी में रथ यात्रा के इस पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है और इसकी शुरुआत गंगा राजवंश द्वारा सन् 1150 इस्वी में की गई थी। यह वह पर्व था, जो पूरे भारत भर में पुरी की रथयात्रा के नाम से काफी प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही पाश्चात्य जगत में यह पहला भारतीय पर्व था, जिसके विषय में विदेशी लोगो को जानकारी प्राप्त हुई। इस त्योहार के विषय में मार्को पोलो जैसे प्रसिद्ध यात्रियों ने भी अपने वृत्तांतों में वर्णन किया है 

 

 

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